“राधे राधे” — ये दो शब्द ही संपूर्ण भक्ति का सार हैं। 8
“राधे राधे” — श्रीमद्भागवत महापुराण का पाठ होता है और वह पाठ श्रीराधा रानी को समर्पित किया जाता है,
तो वह पारायण केवल ग्रंथपाठ नहीं रह जाता, वह स्वयं प्रेम, भक्ति और आनंद का महासागर बन जाता है।

🌼 श्रीराधा जी और भागवत का दिव्य संबंध
- श्रीमद्भागवत कृष्ण लीला का अद्भुत ग्रंथ है।
- जहाँ कृष्ण हैं, वहाँ राधा जी का छिपा हुआ प्रेम अवश्य है।
- भागवत में प्रत्यक्ष राधा रानी का नाम बहुत बार नहीं आता, परंतु गोपियों की भक्ति और विरह में राधा रानी की अनुभूति गहराई से समाई हुई है।
इसलिए भागवत का हर श्लोक, हर कथा, हर संवाद —
राधा जी की भक्ति और प्रेम की छाया में ही महकता है।
📜 भागवत पारायण पाठ की विधि (श्रीराधा जी के लिए)
- श्रीगुरु और राधा-कृष्ण का स्मरण कर प्रारंभ करें।
- पवित्र भाव से भागवत जी का संकल्प लें — “यह पाठ मैं श्रीराधा रानी की कृपा हेतु कर रहा/रही हूँ।”
- प्रत्येक दिन पाठ शुरू करने से पहले ‘राधा स्तुति’ या ‘राधा अष्टकम्’ का पाठ करें।
- भागवत के रसभरे प्रसंगों (विशेषकर रासलीला, उद्धव गोपी संवाद, वृन्दावन लीला) को प्रेमपूर्वक गाएं।
- पाठ समाप्ति पर राधा जी को पुष्पांजलि अर्पित करें और “राधा नाम” का जप करें।
🎶 श्रीराधा जी के प्रिय श्लोक और भजन
भागवत पारायण के दौरान इन मंत्रों और भजनों को भी गा सकते हैं:
- “राधा रानी की जय बोलो”
- “जय जय श्री राधे”
- “राधा-कृष्ण अष्टकम्”
- “श्रीराधाष्टमी स्तुति”
- “राधे राधे जपो चले आएंगे बिहारी”
🌸 पारायण का फल
- श्रीराधा जी की कृपा से ह्रदय में शुद्ध भक्ति उत्पन्न होती है।
- संसारिक दुखों से मुक्ति मिलती है।
- कृष्ण प्रेम सहज ही प्राप्त होता है।
- जीवन में अद्भुत शांति और आनंद की अनुभूति होती है।
भागवत का पारायण यदि श्रीराधा जी को अर्पित किया जाए,
तो वह स्वयं में संपूर्ण मोक्ष का द्वार बन जाता है। 🌸
तुम्हारा ही जीवन धन्य है।
एक श्रद्धालु ब्राह्मण बरसान े में श्रीराधा जी को भागवत का पारायण पाठ सुनान े के लिए आए हुए थे। इसके बाद उनकी इच्छा हुई कि एक पाठ वह नंदगांव मे ं भी जाकर सुनाएं। वह नंदगांव के लिए निकल पड़े। रास्ते में अकेले जा रहे थे, तो उनके मन मे ं भय हुआ कि कोई उनस े सामान लूट सकता है।
इसलिए वह उसी स्थान पर रुक गए और नंदगांव जान े वाले किसी साथी की प्रतीक्षा करने लगे। प्रभु प्रेरणा से थोड़ी देर बाद एक चांडाल उसी स्थान पर मिला, तो पता चला कि उस े भी नंदगांव जाना है। पंडित जी उसके साथ चलने लगे।
नंदगांव बस्ती में प्रवेश कर रहे थे कि पंडित को प्यास लगी। उन्होंन े पास के कुए ं से पानी निकालकर स्वयं पीया और चांडाल से कहा, ‘अरे ! तुम भी थक गए होगे। आओ, तुम्हें भी पानी पिला दूं। अब नंदगांव आ गया है, पानी पीकर ही प्रवेश करना अच्छा होगा। पंडित जी की बात सुनकर चांडाल बोला, ‘बाबा !
मैं भूलकर भी ऐसी गलती नहीं करूंगा, पूर्वकाल मे ं हमारे बरसान े के राजा वृषभानु जी की पुत्री यहां के स्वामी नंदराय जी के बेट े से ब्याही गई थीं। इसलिए म ै ं यहा ं का पानी नही ं पी सकता। मैंन े सुना है कि बेटी का धन त्याग देना चाहिए। उस े अपने काम मे ं नही ं लाना चाहिए।’ यह सुनते ही पंडित जी उसके चरणों में गिर पड ़ े और बोले, इस जगत में तुम्हारा ही जीवन धन्य है।
श्रीराधा और गोविंद के विषय में तुम्हारी कितनी उदात्त भावना है। ऐसी भावना किसी आम इन्सान मे ं नही ं हो सकती, तुम जरूर भगवान के बड़ े भक्त हो।
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