curd दही मे ं पांच फोरन तो मिजाज मगन
दही-बैंगन पूरी तरह सात्विक है, क्योंकि इसमे ं लहसुन-प्याज का उपयोग नही ं होता है।
तड़के वाले मसाले मे ं सबस े अधिक अहमियत पांच फोरन की अहमियत सबस े ज्यादा होती है- सरसों, जीरा, सौंफ, मेथी और कलौंजी ।रत के पूर्वी समुद्री तट पर बंगाल की खाड़ी को छूता ओडिशा का प्रांत, यहां कलिंग का शक्तिशाली साम्राज्य था, जिसका मान-मर्दन मौर्य सम्राट अशोक ने रक्तरंजित युद ्ध से किया था। यह एक अलग कहानी है।
कलिंग ही वह राज्य था, जहा ं से ईसा के जन्म से कई सदी पूर्व बड़े-बड ़ े पोत दक्षिण पूर्व एशिया की तरफ प्रस्थान करते थे। मसालों व्यापार मे ं ही नहीं विचार के आदान-प्रदान, भाषा साहित्य कलाओं को प्रभावित करने में भी इन नाविक व्यापारियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज भी बलि यात्रा पर्व पर पत्तों से बनी छोटी-छोटी नावों में प्रज्ज्वलित रख उन्हें सागर की लहरों पर तैराकर इन स्मृतियों को जीवित रखा जाता है।
बहरहाल विषयांतर से बचन े की जरूरत है। ओडिशा में बला की गर्मी पड़ती है और उमस भी जानलेवा होती है। किसी कारण ओडिशा के पारंपरिक आहार में अनेक ऐस े व्यंजनो ं का समावेश किया जाता रहा है, जिनमें गर्मी और उमस से राहत दिलान े वाली सामग्री का प्रयोग किया जाता है।

रात का बासी भात पानी में रख हल्का खमीर चढ़ा पकाड ़ भात के रूप में अचार की फांक के खाया जाता है। गरम नही ं सामान्य तापमान पर।पकाड़ के बारे में तो आज बहुत लोग जानते ह ैं पर गर्मियो ं के लिए बेहद मुफीद दही वाले बैंगन आज भी हम में से अधिकांश के लिए अजनबी ही बन े हुए है। लंब े वाले बैंगनों को दो या चार फांक चीर पर साबुत रखते हुए ही सरसों के तेल मे ं बहुत हल्का तल लिया जाता है।
नमक के अलावा अन्य मसाले नाममात्र के ही होते हैं। बैंगनों को अलग रख लिया जाता है और तरी बनान े की तैयारी होती है। पिसा हुआ कच्चा नारियल इस े गाढ़ा बनाता है। मसाले इसम े ं भी बराए नाम ही इस्तेमाल होते हैं। चुटकी भर हल्दी, जरा सा पिसा धनिया और हरी मिर्च। दही को बड ़ े जतन से लगातार घुमाते हुए धीरे-धीरे पकाया जाता है।
जब दही अच्छी तरह पक जाए तब बैंगन उसम ें उतार दिए जाते ह ैं और बहुत धीमी आंच पर कुछ देर धीरे-धीरे स्वाद गली उबलते रहते हैं। इसके बाद तैयार बैंगन को आंच से उतार लिया जाता है और ठंडा होने देते हैं। इन बैंगनो ं का आनंद उबले चावलों के साथ तो लिया ही जा सकता है पर इन्हें चावल के आट े से तैयार चौखंडी या दूसरे पीठ े के साथ भी चाव से खाया खिलाया जाता है।
curd दही-बैंगन नामक यह व्यंजन पूर्णतः सात्विक है, क्योंकि इसमे ं लहसुन-प्याज का प्रयोग नही ं होता है। तड़के वाले मसाले मे ं सबस े अधिक अहमियत पांच फोरन की अहमियत सबस े ज्यादा होती हैं, सरसों, जीरा, सौंफ, मेथी, कलौंजी। जिसका उपयोग बंगाली रसोई में भी खुले हाथ से होता बंगाल और ओडिशा बहुत लंबे समय तक एक ही सूब े में थे, इन्होंन े एक-दूसरे के खान े को प्रभावित किया है।
बंगाल में अधिकांश व्यंजनो ं मे ं चुटकी भर चीनी मिला मिठास का पुट दिया जाता है। दही वाले बैंगन मे ं भी जरा सी चीनी दही की खटास को मारती है और बहुत रुचिकर लगती है। प्रसंगवश यहा ं यह उल्लेख भी किया जाना चाहिए कि अनेक सब्जियां जिमीकंद आद ि मिलाकर नारियल के दूध का प्रयोग कर जो दालमा ओडिशा मे ं बनाया जाता ह ै वह भी दही वाले बैंगनो ं की तरह गरम नही ं ठंडा ही खाया जाता है।
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